Thursday, February 3, 2022

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Tuesday, January 25, 2022

कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जीवन परिचय व जयंती | Kabir ke Dohe and Poem Jayanti in hindi

 कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित, जीवन परिचय व जयंती ( Kabir ke Dohe and Poem Jayanti in Hindi)

कबीर शब्द का अर्थ इस्लाम के अनुसार महान होता है. वह एक बहुत बड़े अध्यात्मिक व्यक्ति थे जोकि साधू का जीवन व्यतीत करने लगे, उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण उन्हें पूरी दुनिया की प्रसिद्धि प्राप्त हुई. कबीर हमेशा जीवन के कर्म में विश्वास करते थे वह कभी भी अल्लाह और राम के बीच भेद नहीं करते थे. उन्होंने हमेशा अपने उपदेश में इस बात का जिक्र किया कि ये दोनों एक ही भगवान के दो अलग नाम है. उन्होंने लोगों को उच्च जाति और नीच जाति या किसी भी धर्म को नकारते हुए भाईचारे के एक धर्म को मानने के लिए प्रेरित किया. कबीर दास ने अपने लेखन से भक्ति आन्दोलन को चलाया है. कबीर पंथ नामक एक धार्मिक समुदाय है, जो कबीर के अनुयायी है उनका ये मानना है कि उन्होंने संत कबीर सम्प्रदाय का निर्माण किया है. इस सम्प्रदाय के लोगों को कबीर पंथी कहा जाता है जो कि पुरे देश में फैले हुए है. 



कबीर दास जीवन परिचय

SNबिंदुकबीरदास परिचय
1जन्म1440 वाराणसी
2मृत्यु1518 मघर
3प्रसिद्धीकवी, संत
4धर्मइस्लाम
5रचनाकबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ,बीजक

कबीर दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित (Kabir ke dohe Meaning in Hindi)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.

अर्थ : जब मेने इन संसार में बुराई को ढूढा तब मुझे कोई बुरा नहीं मिला जब मेने खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली . दुसरो में अच्छा बुरा देखने वाला व्यक्ति सदैव खुद को नहीं जनता . जो दुसरो में बुराई ढूंढते है वास्तव में वहीँ सबसे बड़ी बुराई है .

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.

अर्थ : उच्च ज्ञान प्राप्त करने पर भी हर कोई विद्वान् नहीं हो जाता . अक्षर ज्ञान होने के बाद भी अगर उसका महत्त्व ना जान पाए, ज्ञान की करुणा को जो जीवन में न उतार पाए  तो वो अज्ञानी ही है लेकिन जो प्रेम के ज्ञान को जान गया, जिसने प्यार की भाषा को अपना लिया वह बिना अक्षर ज्ञान के विद्वान हो जाता है.

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस दुनियाँ में जो भी करना चाहते हो वो धीरे-धीरे होता हैं अर्थात कर्म के बाद फल क्षणों में नहीं मिलता जैसे एक माली किसी पौधे को जब तक सो घड़े पानी नहीं देता तब तक ऋतू में फल नही आता.

धीरज ही जीवन का आधार हैं,जीवन के हर दौर में धीरज का होना जरुरी है फिर वह विद्यार्थी जीवन हो, वैवाहिक जीवन हो या व्यापारिक जीवन . कबीर ने कहा है अगर कोई माली किसी पौधे को 100  घड़े पानी भी डाले, तो वह एक दिन में बड़ा नहीं होता और नाही बिन मौसम फल देता है . हर बात का एक निश्चित वक्त होता है जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में धीरज का होना आवश्यक है .

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान.

अर्थ : किसी भी व्यक्ति की जाति से उसके ज्ञान का बोध नहीं किया जा सकता , किसी सज्जन की सज्नता का अनुमान भी उसकी जाति से नहीं लगाया जा सकता इसलिए किसी से उसकी जाति पूछना व्यर्थ है उसका ज्ञान और व्यवहार ही अनमोल है  . जैसे किसी तलवार का अपना महत्व है पर म्यान का कोई महत्व नहीं, म्यान महज़ उसका उपरी आवरण  है जैसे जाति मनुष्य का केवल एक शाब्दिक नाम. 

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि.

अर्थ : जिसे बोल का महत्व पता है वह बिना शब्दों को तोले नहीं बोलता  . कहते है कि कमान से छुटा तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते इसलिए इन्हें बिना सोचे-समझे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए . जीवन में वक्त बीत जाता है पर शब्दों के बाण जीवन को रोक देते है . इसलिए वाणि में नियंत्रण और मिठास का होना जरुरी है .

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह,

जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

अर्थ : कबीर ने अपने इस दोहे में बहुत ही उपयोगी और समझने योग्य बात लिखी हैं कि इस दुनियाँ में जिस व्यक्ति को पाने की इच्छा हैं उसे उस चीज को पाने की ही चिंता हैं, मिल जाने पर उसे खो देने की चिंता हैं वो हर पल बैचेन हैं जिसके पास खोने को कुछ हैं लेकिन इस दुनियाँ में वही खुश हैं जिसके पास कुछ नहीं, उसे खोने का डर नहीं, उसे पाने की चिंता नहीं, ऐसा व्यक्ति ही इस दुनियाँ का राजा हैं

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय,

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥

अर्थ : बहुत ही बड़ी बात को कबीर दास जी ने बड़ी सहजता से कहा दिया . उन्होंने कुम्हार और उसकी कला को लेकर कहा हैं कि मिट्टी एक दिन कुम्हार से कहती हैं कि तू क्या मुझे कूट कूट कर आकार दे रहा हैं एक दिन आएगा जब तू खुद मुझ में मिल कर निराकार हो जायेगा अर्थात कितना भी कर्मकांड कर लो एक दिन मिट्टी में ही समाना हैं .

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि लोग सदियों तक मन की शांति के लिये माला हाथ में लेकर ईश्वर की भक्ति करते हैं लेकिन फिर भी उनका मन शांत नहीं होता इसलिये कवी कबीर दास कहते हैं – हे मनुष्य इस माला को जप कर मन की शांति ढूंढने के बजाय तू दो पल अपने मन को टटौल, उसकी सुन देख तुझे अपने आप ही शांति महसूस होने लगेगी .

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय . 

कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

अर्थ : कबीर दास कहते हैं जैसे धरती पर पड़ा तिनका आपको कभी कोई कष्ट नहीं पहुँचाता लेकिन जब वही तिनका उड़ कर आँख में चला जाये तो बहुत कष्टदायी हो जाता हैं अर्थात जीवन के क्षेत्र में किसी को भी तुच्छ अथवा कमजोर समझने की गलती ना करे जीवन के क्षेत्र में कब कौन क्या कर जाये कहा नहीं जा सकता .

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय, 

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

अर्थ : कबीर दास ने यहाँ गुरु के स्थान का वर्णन किया हैं वे कहते हैं कि जब गुरु और स्वयं ईश्वर एक साथ हो तब किसका पहले अभिवादन करे अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दे ? इस पर कबीर कहते हैं कि जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया हैं जिसने ईश्वर से मिलाया हैं वही श्रेष्ठ हैं क्यूंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर क्या हैं बताया हैं और उसने ही तुम्हे इस लायक बनाया हैं कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो .

सुख में सुमिरन सब करै दुख में करै न कोई,

 जो दुख में सुमिरन करै तो दुख काहे होई

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं जब मनुष्य जीवन में सुख आता हैं तब वो ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दुःख आता हैं वो दौड़ा दौड़ा ईश्वर के चरणों में आ जाता हैं फिर आप ही बताये कि ऐसे भक्त की पीड़ा को कौन सुनेगा ?

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय,

मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि प्रभु इतनी कृपा करना कि जिसमे मेरा परिवार सुख से रहे और ना मै भूखा रहू और न ही कोई सदाचारी मनुष्य भी भूखा ना सोये . यहाँ कवी ने परिवार में संसार की इच्छा रखी हैं .

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और, 

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरु का क्या महत्व हैं वो बताया हैं . वे कहते हैं कि मनुष्य तो अँधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता हैं अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर हैं जो ईश्वर से मिला देती हैं लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नही होती जो सहारा दे .

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर 

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर 

अर्थ : कविवर कबीरदास कहते हैं मनुष्य की इच्छा, उसका एश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता हैं यहाँ तक की शरीर भी नष्ट हो जाता हैं लेकिन फिर भी आशा और भोग की आस नहीं मरती .

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर

पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर

अर्थ : कबीरदास जी ने बहुत ही अनमोल शब्द कहे हैं कि यूँही बड़ा कद होने से कुछ नहीं होता क्यूंकि बड़ा तो खजूर का पेड़ भी हैं लेकिन उसकी छाया राहगीर को दो पल का सुकून नही दे सकती और उसके फल इतने दूर हैं कि उन तक आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता . इसलिए कबीर दास जी कहते हैं ऐसे बड़े होने का कोई फायदा नहीं, दिल से और कर्मो से जो बड़ा होता हैं वही सच्चा बड़प्पन कहलाता हैं .

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

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FAQ

Q : संत कबीर दास का जन्म, मृत्यु कब हुई ?

Ans : कबीर दास का जन्म सन 1440 में हुआ था और 1518 में इनकी मृत्यु हो गयी थी. कबीर दास के माता पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है हालाँकि ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म हिन्दू धर्म के समुदाय में हुआ था, लेकिन उनका पालन पोषण एक गरीब मुस्लिम परिवार के द्वारा किया गया था. जिस दम्पति ने उनका पालन किया था उनके नाम नीरू और नीमा थे, कबीर उन्हें वाराणसी के लहरतारा के छोटे से शहर में मिले थे. ये दम्पति बहुत ही गरीब मुस्लिम बुनकर होने के साथ ही अशिक्षित भी थे, लेकिन उन्होंने बड़े प्यार से कबीर को पाला था, वह उनके पास एक साधारण और संतुलित जीवन व्यतीत कर रहे थे. ऐसा माना जाता है कि संत कबीर का परिवार अभी भी वाराणसी के कबीर चौरा में रह रहा है.  

Q : संत कबीर दास की शिक्षा क्या हैं ?

Ans : माना जाता है कि संत कबीर दास की शुरूआती शिक्षा उनको रामानंद जो उनके बचपन के गुरु थे, उन्होंने दी थी. कबीर ने उनसे अध्यात्मिक प्रशिक्षण को प्राप्त किया और बाद में वो उनके प्रसिद्ध प्रिय शिष्य बन गए. उनके बचपन के किस्से में यह माना जाता है कि रामानंद उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे, लेकिन एक सुबह जब रामानंद स्नान करने जा रहे थे तब उस वक्त कबीर तालाब की सीढियों पर बैठ कर रामा रामा मंत्र का जाप कर रहे थे, अचानक रामानंद ने देखा कि कबीर उनके पैरों के नीचे है तब वो अपने आप को दोषी महसूस करते हुए उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिए. व्यावसायिक रूप से उन्होंने कभी भी कोई कक्षाओं में जाकर अध्ययन नहीं किया, लेकिन रहस्यमयी रूप से वो बहुत जानकर व्यक्ति थे. उन्होंने व्रज, अवधि और भोजपुरी जैसी कई औपचारिक भाषाओं में दोहों को लिखा था.   

Q : संत कबीर दास के विचार क्या हैं ?

Ans : कबीर दास पहले ऐसे संत है जिन्होंने हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म दोनों के लिए सार्वभौमिक रूप को अपनाते हुए दोनों धर्म का पालन किया. उनके अनुसार जीवन और परमात्मा का अध्यात्मिक सबंध है और मोक्ष के बारे में उन्होंने ये विचार व्यक्त किये कि जीवन और परमात्मा इन दो दिव्य सिद्धांत को यह एकजुट करने की प्रक्रिया है. व्यक्तिगत रूप से कबीर ने केवल ईश्वर में एकता का अनुसरण किया, लेकिन उन्होंने हिन्दू धर्म के मूर्ति पूजा में कोई विश्वास नहीं दिखाया. उन्होंने भक्ति और सूफी विचारों के प्रति विश्वास दिखाया. उन्होंने लोगों को प्रेरित करने के लिए अपने दार्शनिक विचारों को दिया.    

Q : संत कबीर दास के कार्य क्या हैं ?

Ans : कबीर और उनके अनुयायियों ने अपनी मौखिक रूप से रचित कविता को बावंस कहा. कबीर दास की भाषा और लेखन की शैली सरल और सुन्दर है जो की अर्थ और महत्व से परिपूर्ण है. उनके लेखन में सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के विरोध में हमेशा लोगों के लिए सन्देश रहता था. उनके द्वारा लिखे दोहे बहुत ही स्वभाविक है जो कि उन्होंने दिल की गहराई से लिखा था. उहोने बहुत से प्रेरणादायी दोहों को साधारण शब्दों में अभिव्यक्त किया था. कबीर दास के द्वारा कुल 70 रचनाये लिखी गयी है, जिनमे अधिकांशतः उनके दोहे और गानों के संग्रह है. कबीर निर्गुण भक्ति के प्रति समर्पित थे कबीर दास ने बहुत सी रचनायें की है जिनमे से उनके कुछ प्रसिद्ध लेखन है बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ, सबदास, वसंत, सुकनिधन, मंगल, सखीस और पवित्र अग्नि इत्यादि है.

Q : संत कबीर दास जयंती कब है ?

Ans : संत कबीर दास की जयंती हिन्दू चन्द्र कैलेंडर के अनुसार जयंता पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह मई जून के महीनों में मनाया जाता है. संत कबीर दास जयंती एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो प्रसिद्ध संत, कवि और सामाजिक सुधारक कबीर दास के सम्मान में मनाया जाता है. यह पुरे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. 

Q : संत कबीर दास जयंती मनाने का तरीका क्या हैं ?

Ans : कबीर दास जयंती के अवसर पर कबीर पंथ के अनुयायी उस दिन कबीर के दोहे को पढ़ते है और उनसे शिक्षा से सबक लेते है. विभिन्न स्थानों पर सत्संग का आयोजन और बैठक करते है. इस दिन खास करके उनके जन्म स्थान वाराणसी के कबीर चौथा मठ में धार्मिक उपदेश आयोजित किये जाते है, साथ ही देश के अलग अलग भागों के विभिन्न मंदिरों में कबीर दास जयंती का उत्सव मनाया जाता है. कुछ जगह कबीर दास जयंती के अवसर पर शोभायात्रा भी निकली जाती है, जोकि एक विशेष स्थान से शुरू होकर कबीर मंदिर तक आ कर ख़त्म हो जाती है.

Q : संत कबीर दास की उपलब्धि क्या हैं ?

Ans : कबीर दास की हर धर्म के व्यक्ति के द्वारा प्रशंसा कि जाती है उनकी दी हुई शिक्षा आज भी नई पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक और जीवित है. उन्होंने कभी भी किसी धार्मिक भेदभाव पर विश्वास नहीं किया था इस तरह के महान कृत्यों के कारण ही उन्हें संत की उपाधि उनके गुरु रामानंद ने दी थी.              

Q : संत कबीर दास का व्यक्तिगत जीवन क्या हैं ?

Ans : कुछ ने उप व्याख्यायित किया है कि कबीर ने कभी भी शादी नहीं की थी वो हमेशा अविवाहित जीवन ही व्यतीत किये थे, लेकिन कुछ विद्वानों ने साहित्य निष्कर्ष निकालते हुए ये दावा किया है कि कबीर ने शादी की थी, और उनकी पत्नी का नाम धारिया था. साथ ही उन्होंने ये भी दावा किया कि उनके एक पुत्र जिसका नाम कमल था और एक पुत्री भी थी जिसका नाम कमली था.  

Q : संत कबीर दास की आलोचना क्यों हुई ?

Ans : कबीर के द्वारा एक महिला मनुष्य के अध्यात्मिक प्रगति को रोकती है जब वह व्यक्ति के पास आती है तो भक्ति, मुक्ति और दिव्य ज्ञान उस व्यक्ति की आत्मा में समाहित नहीं हो पाते है, वह सब कुछ नष्ट कर देती है. जिसके लिए उनकी आलोचना की गयी है निक्की गुनिंदर सिंह के अनुसार कबीर की राय महिलाओं के लिए अपमानजनक और अवज्ञाकारी है. वेंडी दोनिगेर के अनुसार कबीर महिलाओं को लेकर एक मिथाक्वादी पूर्वाग्रह से ग्रसित थे.  


स्मृति मंधाना का जीवन परिचय, पति, आयु, जाति (Smriti Mandhana Biography in Hindi)

 स्मृति मंधाना का जीवन परिचय, क्रिकेटर, पति का नाम, आयु, बायोग्राफी, कौन है,  बॉयफ्रेंड, जाति, धर्म (Smriti Mandhana Biography in Hindi) (Age, Cricketer, Husband, Biography, Boyfriend, Height, Career, Century, Caste, Crush, Highest Score, Test)

हमारे देश में क्रिकेट प्रेमियों की एक बड़ी तादात है। क्रिकेट हमेशा ही भारत का चहेता खेल रहा है। इससे जुड़ा रोमांच शायद ही किसी और खेल के मैदान पर देखने को मिलता है।गौर करने वाली बात यह है कि पुरुष क्रिकेट टीम के अलावा आजकल महिला क्रिकेट टीम को भी काफी प्रोत्साहन मिल रहा है। महिला क्रिकेट टीम के खिलाड़ी अपने बेहतर प्रदर्शन के बल पर दर्शकों के दिलों में जगह बना रहे हैं। आज इस आर्टिकल के माध्यम से क्रिकेट जगत से जुड़ी एक ऐसी ही खिलाड़ी की हम बात करने जा रहे हैं जिनके बारे में आज हर भारतीय जानना चाहता है। भारतीय महिला क्रिकेट की उन खिलाड़ी का नाम है स्मृति श्रीनिवास मंधाना जिन्हे पूरा विश्व स्मृति मंधाना के नाम से जानता है। तो आइए जानें, स्मृति मंधाना के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।


स्मृति मंधाना का जीवन परिचय (Smriti Mandhana Biography in Hindi)

नामस्मृति श्रीनिवास मंधाना
जन्म18 जुलाई सन 1996 
आयु25
हाइट5 फुट 4 इंच
बर्थ प्लेसमहाराष्ट्र 
राष्ट्रीयताभारतीय
पिताश्रीनिवास मंधाना
मातास्मिता मंधाना
भाईश्रवण मंधाना 
पेशाक्रिकेट
धर्महिन्दू
जातिमारवाड़ी
मुख्य अवार्ड2019 में अर्जुन पुरस्कार
राशिकर्क
जर्सी नंबर18
डेब्यू (अंतराष्ट्रीय)उन्होंने 2013 में बांग्लादेश के विरुद्ध ओडीआई और टी 20 खेल कर अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा था।

स्मृति मंधाना का जन्म, आयु, परिवार, जाति (Smriti Mandhana Birth, Age, Family and Caste)

स्मृति मंधाना का जन्म 18 जुलाई सन 1996 को महाराष्ट्र में हुआ था। ये मारवाड़ी समुदाय से सम्बन्ध रखती है. इनके पिता का नाम श्रीनिवास मंधाना और मां का नाम स्मिता मंधाना है। स्मृति का एक भाई भी है जिसका नाम श्रवण मंधाना है। स्मृति की उम्र abhi 25 साल है.

स्मृति मंधाना का प्रारंभिक जीवन (Smriti Mandhana Early Life)

महज़ दो वर्ष की छोटी आयु में स्मृति अपने परिवार के साथ माधवनगर, सांगली, महाराष्ट्र में शिफ्ट हो गई थीं। स्मृति की स्कूली शिक्षा सांगली में ही पूरी हुई। स्मृति की क्रिकेट में रुचि होने की एक वजह उनके पिता और भाई भी थे। उनके पिता और भाई दोनो ही डिस्ट्रिक्ट लेवल के खिलाड़ी रह चुके थे। स्मृति के भाई श्रवण ने महाराष्ट्र के लिए अंडर 16 टूर्नामेंट भी खेला है। इनकी मां स्मिता ने भी स्मृति की काफी मदद की। बचपन से ही वो स्मृति के खान पान, कपड़े, ट्रेनिंग आदि का पूरा ध्यान रखा करती थीं।

स्मृति मंधाना डोमेस्टिक क्रिकेट करियर (Domestic Cricket Career)

स्मृति ने महज नौ वर्ष की आयु से ही अपने क्रिकेट के करियर की शुरुआत की थी। इस दिशा में उनको पहली महत्वपूर्ण सफलता तब मिली जब अंडर 15 में  इनका चुनाव हुआ। इसके बाद स्मृति ने कभी मुड़ कर नहीं देखा। करियर में एक बेहतरीन मोड़ तब आया जब स्मृति को महाराष्ट्र की अंडर 19 की ओर से खेलने का मौका मिला। घरेलू क्रिकेट में शुरू से ही स्मृति का प्रदर्शन शानदार रहा। 

साल 2016 भी स्मृति के कैरियर का एक महत्वपूर्ण वर्ष रहा जब उन्होंने विमेन चैलेंज  ट्रॉफी में तीन अर्धशतक बनाकर अपनी टीम की जीत को सुनिश्चित किया। इस टूर्नामेंट में उन्होंने कुल मिलाकर 194 रन बनाए थे जिसके कारण वो इस टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ स्कोरर साबित हुईं।

स्मृति मंधाना इंटरनेशनल क्रिकेट करियर (International Cricket Career)

स्मृति का इंटरनेशनल क्रिकेट कैरियर उनके डोमेस्टिक क्रिकेट कैरियर से भी अधिक रोचक है। उनके इंटरनेशनल टेस्ट क्रिकेट करियर की शुरुआत सन 2014 में इंग्लैंड के खिलाफ वर्मस्ले पार्क में हुई थी। इस मैच की दोनो इनिंग्स को मिला कर उन्होंने कुल 73 रन बनाए थे और इस तरह अपनी टीम की जीत सुनिश्चित की थी। इसके पहले उन्होंने 2013 में बांग्लादेश के विरुद्ध ओडीआई और टी 20 खेल कर अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा था।

साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने अपने पहला इंटरनेशनल शतक जड़ा था। उन्हीं 109 गेंदों पर 102 रन बनाए थे। इसके बाद स्मृति एक मात्र भारतीय खिलाड़ी बनी जिन्हे 2016 आईसीसी ने महिला टीम के नामों में जगह दी थी।

स्मृति की कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों में एक उपलब्धि ये भी है कि वो 2017 वर्ल्ड कप में उस महिला टीम की सदस्या थी जिसने इंग्लैंड को कड़ी टक्कर दी थी। इसके साथ साथ स्मृति ने अंतर्राष्ट्रीय टी 20,2019 में चौबीस गेंदों पर  न्यूजीलैंड के विरुद्ध सबसे तेज अर्धशतक लगा कर रिकॉर्ड बनाया था।

स्मृति मंधाना को मिले प्रमुख पुरस्कार (Smriti Mandhana Award)

  • स्मृति को वर्ष 2019 में आईसीसी वुमन क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला था।
  • स्मृति को वर्ष 2019 में ही आईसीसी विमेन ओडीआई प्लेयर ऑफ द ईयर के साइकिल से भी सम्मानित किया जा चुका है।
  • वर्ष 2018 में बीसीसीआई ने उन्हें बेस्ट विमेन इंटरनेशनल क्रिकेटर का अवार्ड दिया था।
  • भारत सरकार द्वारा उन्हें 2019 में अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

स्मृति मंधाना के पति एवं बॉयफ्रेंड (Smriti Mandhana Husband, Boyfriend)

स्मृति मंधाना की अब तक शादी नहीं हुई है और इनका कोई बॉयफ्रेंड है या नहीं इसकी कोई भी जानकारी उनके द्वारा अभी तक नहीं दी गई है.

स्मृति मंधाना आज भारतीय क्रिकेट एवं अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में एक सम्मानित नाम है। उनकी उपलब्धियां इस बात को दर्शाती है कि महिलाएं क्रिकेट जैसे खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन करने की क्षमता रखती हैं। मंदाना ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से महिला क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। समस्त भारतवासी उनके शानदार प्रदर्शन और उपलब्धियों की कामना करते हैं।

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FAQ

Q : स्मृति मंधाना का जन्म कहां हुआ था?

Ans : महाराष्ट्र में।

Q : स्मृति मंधाना किस राज्य से बिलॉन्ग करती हैं ?

Ans : महाराष्ट्र।

Q : स्मृति मंधाना अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत कब की?

Ans : 2014

Q : स्मृति मंधाना को अर्जुन पुरस्कार कब मिला?

Ans : 2019

Q : स्मृति मंधाना ने क्रिकेट खेलना कब शुरू किया था?

Ans : नौ वर्ष की आयु से।

Saturday, December 11, 2021

State government to allow businesses to pay state fees with cryptocurrencies like Bitcoin

 




Florida Governor Ron DeSantis has officially proposed the state government to allow businesses to pay state fees with cryptocurrencies like Bitcoin (BTC).

The Republican governor announced the idea as part of his 2022–2023 budget proposal, released on Dec. 9.

According to the official budget highlights, DeSantis proposed to provide $200,000 to the Department of Financial Services to offer Florida corporations the ability to “pay state fees via cryptocurrency directly to the Department of State.”

“Florida encourages cryptocurrency as a means of commerce and furthering Florida’s attractiveness to businesses and economic growth,” the document reads.

DeSantis additionally proposed allocating another $500,000 to explore the potential of blockchain technology to maintain motor vehicle records as well as authenticate Medicaid transactions and detect potential fraud.

The overall $700,000 proposal is dedicated to enabling a crypto-friendly Florida, the budget proposal reads.

Florida has been steadily emerging as a major cryptocurrency-friendly jurisdiction in the United States as one of its major cities, Miami, is being actively promoted as the “world's Bitcoin and crypto capital.”

Last month, Miami Mayor Francis Suarez announced that he aimed to be the first U.S. lawmaker to accept part of his paycheck in Bitcoin. The official reportedly owns both BTC and Ether (ETH).

In September, Miami’s city commissioners voted to accept funds generated by the new MiamiCoin cryptocurrency, which was launched by the smart contracts protocol CityCoins in August. Having generated more than $21 million in yields as of mid-November, MiamiCoin will be available to all Miami residents in the form of a Bitcoin dividend, according to the city mayor.

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